1.0 उद्देश्य
1.1 परिचय
1.2 संदेश लेखन
1.3 संदेश लेखन का महत्व
1.4 संदेश के प्रकार
1.5 संदेश लेखन का दोष
1.6 संदेश लेखन के कार्य
1.7 संदेश लेखन के क्षेत्र
1.8 संदेशलेखन की विशेषता
2.0 परिपत्र (Circular)
2.1 उद्देश्य
2.2 परिपत्र की विशेषताएं
3.0 निमंत्रण पत्र
3.1आमंत्रण
4.0स्ववृत लेखन (Biodata)
4.1 स्ववृत(Biodata)
4.2 यह ध्यानद ने योग्य बातें
5.0 सहमति/असहमति
6.0 विचार-विमर्श/ राय/ मशवय
1.0 उद्देश्य
1. संदेश लेखन के महत्व को समझाना
2. परिपत्र क्या है? समझाना
3. निमंत्रण-पत्र की उपयोगिता बताना।
4. स्ववृत Biodataकी लिखने की सही जानकारी देना
5. राय/विचार-विमर्श को जानना।
6. सहमति/असहमति को समझाना
1.1 परिचय
संदेश के बिना जीवन संभव नहीं है मानव सभ्यता के विकसा में संदेश की
सबसे त्वपूर्ण भूमिका है। संदेश सूचनाओं, विचारों और भावनाओं का
आदान-प्रदान है। इस प्रकार संदेश एक प्रक्रिया है जिसमें कई तत्व शामिल हैं।
संदेश के कई प्रकार हैं जिसमें मौखिक और लिखित के आलावा अतः वैयक्तिक,
अंतर वैयक्तिक, समूह संदेश प्रमुख हैं। यह सूचना, शिक्षा, मनोरंजन के आलावा
एजेंडा तय करने का काम भी करते है।
संदेश का अर्थ चलना या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचना है।
अपने विज्ञान में ताप संचार के बारे में पढ़ा होगा कि कैसे गरमी एक बिंदु से
दूसरे बिंदू तक पहुँचती है। इसी तरह टेलीफोन, तार या बेतार, तथा पत्र के जरिये
मौखिक या लिखित संदेश को एक स्थान से दुसरे पर भेजा जाता है। हम यहाँ दो
या दो से अधिक व्यक्तियों के बिच विचारों और भावनाओं का आदान - प्रदान की
बात कर रहे हैं। एक दुसरे से संदेश करते समय हम अपने अनुभवों को ही एक
दुसरे से बाँटते हैं। संदेश दो या दो अधिक व्यक्तियों में ही नहीं हजारों
- लाखो
लोगों के बीच होने वाले संदेश को भी शामिल किया जाता है इस प्रकार सूचनाओं,
विचारों और भावनाओं को लिखित रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाना
ही संदेश है।
इस इकाई में हम संदेश के कई रूपों की चर्चा करेंगे (परिपत्र, निमंत्रण,
सहमति/असहमति पत्र, राय/विचार विमश) साथ ही संदेश लेखन का महत्व भी जान
पाएगें।
1.2 संदेश लेखन
संदेश लेखन का आशय यहाँ यत्रिक हस्त कौशल से नहीं है। उसका आशय
शब्दों के सहारे किसी चीज पर विचार करने और उस विचारों को व्याकरणिक शुदृता
के साथ सुसंगठित रूप में अभिव्यक्त करने से है याद रहे संदेश विचारों की
अभिव्यक्ति का माध्यम ही नही स्वंय विचार करने का साधन भी है। विचार करने
और उसे व्यक्त करने की यह प्रक्रिया संदेश कहलाती है।
1.3 संदेश लेखन का महत्व
जरा सोचिए क्या आप बिना बात किए रह सकते हैं? शायद नहीं अकेलेपन
और सोने के समय को छोड़ दिया जाए तो हम आप अधिकांश समय अपनी
छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने या अपनी भावनाओं और विचारों को प्रकट करने
के लिए एक -
दूसरे से या समूह में बातचीत (संदेश) करने में लगा देते हैं। यहाँ
तक कि कई बार हम अकेले में खुद से बात करने लगते हैं। सचतो ये है कि हम
बिना किए रह ही नहीं सकते। यदि हमें समाज में रहना है और उसके विभिन्न
किया कलापों में हिस्सा लेना है तो ये बिना संदेश के संभव ही नही है। हम चाहें
या न चाहें अपने दैनिक जीवन में हम संदेश बिना नही रहे सकते वास्तवे में संदेश
जीवन की निशानी है। मनुष्य जब तक जीवित है वह संदेश करता रहता है। यहाँ
तक बच्चा भी रोकर या चिल्लाकर सब का ध्यान अपनी ओर खीचंता है।
1.संदेश के प्रकार
संदेश एक जटिल प्रकिया है। उसके कई रूप या प्रकार है। एक दूसरे में भी काफी
घुल-मिले हैं।
1. किसी को इशारे से बुलाना इसे सांकेतिक संदेश कहते हैं।
2. अपने से बड़ो को सम्मान से प्रणाम करते है तो उसमें मौखिक संदेश के
साथ-साथ दोनों हथेलियों जोड़कर प्रणाम का इशारा भी करते है तो मौखिक
और अमौखिक संदेश होता है।
3. जब इम अकेले में किसी को याद करना, कुछ सोचने और योजना बनाना
भी एक प्रकार की संदेश प्रक्रिया है इस में संचारक और प्राप्तकर्ता एक ही
होते है इस अतः व्यक्ति संदेश कहते है।
4. जब दो व्यक्ति आपस में संदेश करते हैं तो ये अतंर वैक्ति संदेश होता है।
5. जब एक समूह आपस में विचार-विमर्श या चर्चा करता है तो समूह संदेश
कहलाता है।
1.5 संदेश लेखन का दोष
विवरण के सुसंबदृ होने के साथ-साथ सुसंगत होना भी अच्छे संदेश
लेखन की खासियत है। आपकी कही गई बातें न सिर्फ आपस में जुड़ी हुई हों
बल्कि उनमें तालमेल भी हो अगर आपकी दो बातें आपस में ही एक दुसरे का
खंडन करती हों यह संदेश लेखान का ही नही किसी भी तरह की अभिव्यक्ति का
एक अक्षम्य दोष है उदाहरण के लिए - मौसम की चर्चा करते करते आप एकाएक
राजनीति पर बात करने लगे और ऐसा करने का कोई ठोस आधार या कारण न
हो-
1.6 संदेश लेखन के कार्य :-
1. संदेश का प्रयोग हम कुछ हासिल करने या प्राप्त करने के लिए करते है।
जैसे किसी मित्र से किताब माँगने के लिए।
2. कुछ जानने और बताने के लिए भी हम संदेश का प्रयोग करते हैं। जैसे
किसी को कोई सूचना देने या सूचना प्राप्त करने के लिए।
3. संदेश का प्रयोग हम आपसी संपर्को को बढ़ाने और बनाए रखने के लिए भी
करते हैं ये सामाजिक, व्यक्तिगत या समूहगत संदेश हो सकती है।
4. संदेश का प्रयोग हम अपनी रूचि की किसी वस्तु या विषय के प्रति
प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए भी करते हैं। ये प्रतिक्रिया सकारात्मक या
नकारात्मक हो सकती है।
5. संदेश का प्रयोग निमंत्रण देने के लिए भी करते हैं ये निमंत्रण किसी
समहारो के लिए होते है जैसे शादी, उदघाटन, आमसभा आदि।
6. संदेश का उपयोग हम अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए भी करते हैं
जैसे खुशी, गम आदि।
7. संदेश के द्वारा हम किसी के व्यवहार को नियंत्रित करने की कोशिश कर
सकते हैं यानी हम एक खास तरीके से व्यवहार के लिए कह सकते हैं।
8. संदेश के प्रयोग हम सरकारी और गैर सरकारी र्कायालों के अधिकारियों को
किसी स्थिति से अवगत कराने के लिए भी कर सकते हैं।
9. संदेशो के द्वारा हम जनता को देश-दुनिया के हालात से परिचित कराने और
उसके प्रति सजग और जागरूक भी कर सकते हैं।
10. संदेश सरकार और समाज के बीच प्रतिक्रिया करने के लिए अच्छा
माध्यम है।
11. संदेश राय व्यक्त करने और विचारा-विमर्श के मंच के रूप में भी
काम करते हैं।
12. संदेशो के मसध्यम से हम सरकार या किसी संगठन या संस्था में
कोई अनियमितता बरती जा रही ये निगरानी भी कर सकते हैं।
13. अपने आस पास घटित घटनाओं को संदेश द्वारा अभिव्यक्त कर सकते
हैं।
14. हमारे मन में किसी कार्य के प्रति उदासीनता को संदेश द्वारा व्यक्त
कर सकते हैं।
15. अपने मौलिक अधिकारों को संदेश लेखन के द्वारा व्यक्त कर सकते
5
16. किसी विषय के साहचर्य से जो भी सार्थक और सुसंग विचार हमारे
मन में आते हैं उन्हें हम संदेश लेखन के द्वारा व्यक्त कर सकते है।
1.7 संदेश लेखन के क्षेत्र :-
संदेश लेखन के विषयों की संख्या अपरिमित है। आपके सामने की दीवार,
उस दीवार पर टंगी घड़ी, उस दीवार में बाहर की खुलता झरोखा-कुछ भी उसका
विषय हो सकता है। अर्थात संदेश लेखन का क्षेत्र व्यापक है इस की कोई सीमा
नहीं है।
1.8 संदेश लेखन की विशेषता
संदेश लेखन की सबसे महात्वपूर्ण विशेषता ये है कि हमारे मन की जो बात हम
मौखिकरूप से व्यक्ति नहीं कर पाते वो बात हम बहुत ही आसानी से लिख कर
व्यक्त कर सकते हैं।
2.0 परिपत्र (Circular)
रिपत्र को अंग्रेजी में Circular कहते हैं। प्रत्येक कार्यालय में प्रायः कई
सूचनाएं, आदेश, प्रसारित होते रहते हैं। वे सूचनाएं एवं आदेश जो सभी अधीनस्थ
अधिकारियों, कर्मचारियों के संबंध में होते है वे परिपत्र के माध्यम से भेजे जाते है।
जिन पत्रों के द्वारा सूचनाएँ और आदेश प्रसारित किए जाते है उन्हें परिपत्र कहा
जाता है बैठक में लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों को कार्यान्वित करने के लिए परिपत्र
जारी किया जाता है।
जिस मुद्दे को लेकर पहला परिपत्र जारी किया जाता है उस मुद्दे पर होने वाला
फैसला भी परिपत्र के रूप में जारी किया जाता है जिसमें निर्णय को कार्यन्वित
किए जाने के निर्देश होते हैं।
शासन प्रणली में एक कार्यालय के अधीन कई कार्यालय होते हैं। उनमें
कई कर्मचारी होते हैं। यह श्रृंखला ऊपर से नीच की और चलती है।
2.1 उद्देश्य
परिपत्र कई उद्देश्यों के लिए जारी किए जाते हैं जो निम्न प्रकार है-
1. नियमों या अनुदेशों को आवश्यकतानुसार सामान्य रूप से सूचित करना
परिपत्र का उद्देश्य है।
2. मंत्रालय या विभागीय कार्यालय जब कोई सुचना अथवा अमुदेश अपने अधीन
कार्यालयों को भेजना चाहता है परिपत्र का प्रयोग किया जाता है।
3. एक व्यवसाय की स्थापना या हस्तांतरण।
4. एक नई शाखा खोलना।
5. परिसर में परिवर्तन।
6. किसी व्यवसाय को लेना या बंद करना।
7. व्यपार का विद्यटन या एकीकरण।
8. कर्मचारी की नियुक्ति, छुट्टी या सेवानिकृरित।
9. एक भागीदार की प्रवेश या मृत्यु।
10.
बोनस जारी करना।
11. शेयरधारकों को सही शेयरों की पेशकश।
2.2 परिपत्र की विशेषताएं
1. परिपत्र हमेशा उच्च कार्यालय द्वारा अपने अधीनस्थ कार्यालयों को भेजा जाता
है।
2. परिपत्र में उच्च कार्यालय द्वारा लिए कोई विशेष निर्णय, विशेष प्रस्ताव, विशेष
रियायत या किसी अन्य विषय से संबद्ध सूचनाएं जो सर्वप्रभारी होती हैं भेजी
जाती हैं।
3. एक परिपत्र में एक ही विषय होता है।
4. इसमें संबोधन नहीं होता है।
7
।
5. इसकी भाषा आदेशात्मक होती है।
6. यह औपचारिक शैली में ही लिखा जाता
7. इसकी विषय वस्तु सारगर्भित होती है।
8. संक्षेप में ही पूर्ण विवरण दिया जाता है।
9. परिपत्र में कार्यालय की सामान्य सूचना होती है।
2.3 परिपत्र को तैयार करते समय निम्न बिंदुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
1. परिपत्र सावधानी से तैयार किया जाना चाहिए।
2. जानकारीपूर्ण होना चाहिए।
3. वे अस्पष्ट नही होना चाहिए।
4. परिपत्र स्वर में विनम्र होना चाहिए और फॉर्म में प्रसन्न होना चाहिए।
5. एक परिपत्र पत्र का मसौदा तैयार करते समय इसका उद्देश्य ध्यान रखा
जाना चाहिए।
6. परिपत्र पत्र संक्षिप्त होना चाहिए।
7. भाषा में चुस्ती और कसाव अपेक्षित है, जिससे संदेश सरल, स्वाभाविक सुंदर
और प्रभावी लगे।
sandesh lekhan class 9th,10th |
अखिल भारतीय साहित्य एवं संस्कृति संस्थान
महानिदेशालय
परिपत्र
पत्रांक : 24/13/प्र.2005
नयी दिल्ली, 27 मई
2005
विषय : मोबाईल फोन पर होने वाले व्यय के लिए निर्धारित सीमा
महानिदेशालय ने उपर्युक्त विषय पर दिनांक 23 नवंबर 2004 को एक समसंख्यक
परिपत्र जारी किया था।
उपर्युक्त परिपत्र द्वारा मोबाइल फोन पर होने वाले व्यय की सीमा दो हजार रूपय
प्रतिमाह निर्धारित की गई थी।
अखिल भारतीय साहित्य एवं संस्कृति बोर्ड द्वारा इस सीमा पर पुनर्विचार किया
गया। तद्नुसार उपर्युक्त परिपत्र में आंशिक संशोधन करते हुए यह निर्णय लिया
गया है कि मुंबई क्षेत्रीय कार्यालय के लिए यह सीमा छह हजार रूपय प्रतिमाह
होगी।
उपर्युक्त परिपत्र के अन्य प्रावधान पूर्ववत रहेंगे।
यह निर्णय तत्काल प्रभाव से लागू होगा।
गुफरान अहमद
9
मध्यप्रदेश शासन, सामान्य प्रशासन विभाग
परिपत्र
कमांक-स्थान 88-ii-A3/63भोपाल, दिनांक 1 जुलाई, 2001
समस्त कमिश्नर, मध्यप्रदेश
समस्त कलेक्टर, मध्यप्रदेश
समस्त विभागाध्यक्ष, मध्यप्रदेश
सचिव माध्यमिक शि.मं., म प्र., भोपाल
अध्यक्ष राज्य शैक्षिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान परिषद, भोपाल,
सचिव मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग, इंदौर
समस्त निगम, मध्य प्रदेश,
विषय- कार्यालय में ठीक समय पर तथा ठीक समय तक उपस्थित रहने बाबत्।
राजय शासन के ध्यान में जन-प्रतिनिधियों के माध्यम से यह लाया गया है कि
विभागाध्यक्ष, कार्यालय प्रमुख एवं कार्यालय प्रधान कार्यालय के निर्धारित समय पर
कार्यालयों में नहीं पहुंचते हैं तथा कार्यालय में अंत समय तक नहीं रहते। उनके
कार्यालयों में ठीक समय पर न पहुंचने तथा ठीक समय तक न रहने के कारण
अधीनस्थ अधिकारी और कर्मचारी भी उनका अनुसरण करते हैं जिसका परिणाम यह
होता है कि एक ओर सामान्य जन तथा जन-प्रतिनिधि उनसे व्यक्तिगत और
सार्वजनिक समस्याओं के हल के लिए नहीं मिल पाते दूसरे यह कि कार्यालयों में
अधिकारियों और कर्मचारियों के कार्यालय के लिए निर्धारित समय पर उपस्थित न
रहने के फलस्वरूप कार्य पूरी होने में विलंब होता है तथा ढील-पोल हो जाता है
जिससे जनता एवं जन-प्रतिनिधियों को असुविधाएं होती हैं।
अभि विगत वर्ष कार्यालय का सघन निरिक्षण किया गया था जिसमें उपयोक्त
सभी जाकारी प्राप्त हुई कि कार्यालय प्रमुख व कार्यालय प्रधान अपने कार्यालयों में
ठीक समय से इसलिए नहीं पहुंचते और न ही ठीक समय तक इसलिए कार्यालय
में रहते क्योंकि उन्हें टूर पर जाना पड़ता है। टूर पर जाने से पूर्व वे कार्यालय का
प्रभार वरिष्ट व्यक्ति को नहीं सौंपते और न ही उसे कार्य निपटाने के लिए अधिकृत
करते हैं जिसके परिणामस्वरूप अधीनस्थ अधिकारी कार्यालयों में विलंब से पंहुचते हैं
तथा कार्यालय समय के पहले ही कार्यालय से चले जाते हैं। कर्मचारी वर्ग भी
इनका अनुसरण करता है जिसमें विभाग एवं कार्यालयों में अव्यवस्था फैलती है तथा
काम निबटाने में विलंब ही नहीं होता वरन् इतना काम पेंडिंग हो जाता है कि
निबटा पाना असंभव हो जाता है।
कृपया सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश एवं ज्ञापनों का अवलोकन कर इनका
स्वंय द्वारा भी पालन किया जाय तथा अधीनस्थ अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा
भी इनका पालन कराया जाय नही तो अनुशासनात्मक कार्यवाही संभव है।
देवी सहाय
(उप-सचिव)
सामान्य प्रशासन
मध्यप्रदेश शासन भोपाल
11
3.0 निमंत्रण पत्र
Invitations
विवाह, जन्म-दिन, गृह-प्रवेश, उदघाटन, पाठ, जागरण अनेक मांगलिक कार्यक्रमों
पर हम अपने प्रियजनों व मित्रों को आमंत्रित करने के लिए पत्र लिखते हैं। ये पत्र
व्यक्तिगत भी हो सकते हैं। और सामाजिक भी। व्यक्तिगत पत्र हम स्वयं अपने
हाथों से लिखकर भेजते हैं और सामाजिक-पत्र छपवाए जाते हैं।
निमंत्रण किसी समहारो की बुनियादी जानकारी देने का एक सरल साधन है।
निमंत्रण शब्द एक ऐसा शब्द है जिसके आप रचनात्मक बनाना चहाते हैं लेकिन
रचनात्मक न भी हो तो कोई फर्क नही पड़ता लेकिन उनमें बुनियादी जानकारी
स्पष्ट रूप से देने की जरूरत है जैसे -
तुम कौन हो?
तुम क्या कर रहे हो?
कब और कहाँ कर रहे हो?
आप ये जानकारी कैसे साझा करते हैं। आप अपने कलात्मक स्वाद के लिए सब
कुछ व्यक्त कर सकते हैं।
• निमंत्रण का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा समहारों के मेजबान के नाम को शामिल
करना है अगर नाम ज्यादा हों तो उनको कार्यो के हिसाब से सूचीबृद्ध करना
होता है।
• हम क्या कर रहे हैं को स्पष्ट रूप से दर्शाना चाहिए उदहारण के लिए मेरी
बेटी की शादी, मेरे पिता के 50 वे जन्मदिन, मेरे नये शोरूम का उदघाटन
आदि।
• निमंत्रण-पत्र में अयोजन की सही स्पष्ट तारीख और पता होना बहुत
आवश्यक है नही तो मेहमान को पता ढुंडने मे बहुत परेशानी होती है।
• निमंत्रण भेजना चाहे कागज पर या इलेक्ट्रॉनिक रूप से किसी आयोजन की
योजना बनाना सबसे महत्वपूर्ण कदमों में से एक है अपने समहारों के लिए
संदेश लेखन Class 10
संदेश लेखन के उदाहरण
शुभकामना संदेश लेखन Class 10
संदेश लेखन Class 9
औपचारिक संदेश लेखन के उदाहरण
शुभकामना संदेश लेखन class 9
बधाई संदेश लेखन
हिंदी दिवस पर संदेश लेखन
उपयुक्त निमंत्रण शब्दों का सही इस्तेमाल निमंत्रणों की शानबड़ा देता हैं
जिससे आपके महमान प्रभावित हुए बिना नही रह सकतें।
पुत्र के विवाह का निमन्त्रण
।। श्री गणेशाय नमः ।।
परमपिता परमात्मा की असीम अनुकम्पा से
मेरे सुपुत्र
चिल विकास
एवम्
आयु० तनु
(सुपुत्री मिथिलेश कुमार, गुड़गाँव निवासी)
का
शुभ विवाह
शुकवार, दिनांक 25 फरवरी, 2017 को होना निश्चित हुआ है। इस पुनीत अवसर पर आप
मेरे निवास-157, आदर्शनगर, नई दिल्ली, पर कार्यक्रमानुसार सादर आमन्त्रित हैं।
कार्यक्रम
24 फरवरी, 2017 गुरुवार
प्रीतिभोज
दोपहर 12 बजे
25 फरवरी, 2017 शुक्रवार
दोपहर 12 बजे
घुड़चढ़ी
बरात -प्रस्थान
अपराह 4 बजे
विनीत
दर्शनाभिलाषी
लखन, संजय, राजू
वीरेन्द्र कुमार
13
3.1आमंत्रण
हर्ष के साथ आपको सूचित किया जाता है कि ग्राम रायबिडपुरा, जिला खरगोन में
ब्रिज किसान क्लब का उद्घाटन समारोह रखा गया है जिसमें आपकी उपस्थिति
प्रार्थनीय है। (ब्रिज है एक विश्व प्रसिद्ध ताश का खेल)
स्थान :- ब्रिज किसान क्लब, रायबिडपुरा
दिनांक:- 22-07-2017
समय :-दो. 03 से 06 बजे तक
विनित
ब्रिज किसान क्लब, रायबिहपुरा
जन्म-दिन का निमंत्र-पत्र
2094/155, गणेश पूरा
त्रि नगर, दिल्ली
20 जुलाई, 2017
प्रिय अंकित,
सप्रेम नमस्कार।
कल ही तुम्हारा पत्र मिला, जिसे पढ़कर बहुत प्रसन्ता हुई कि तुम इस बार कक्षा
में प्रथम आई हो।
आशा करती हूँ कि तुम कुशल होगी। मैं यह पत्र तुम्हे अपने जन्मदिन के समारोह
पर निमंत्रित करने के लिए लिखा रही हूँ जैसे कि तुम्हें मालूम है कि 14 अगस्त
को मेरा जन्मदिन हैं, इस बार मेरे माता-पिता ने छोटे से समहारों का आयोजन
किया है। कार्यक्रम शाम को 4 बजे शुरू होगा और रात को 8 बजे रात्रिभोज तक
चलेगा। मैं आशा करती हूँ तुम जरूर आओगी। अपने भाई को भी साथ जरूर
लाना मैं बेसबरी से तुम्हारा इंतजार करूँगी।
अपने माता-पिता को मेरा प्रणाम कहना व अमन को प्यार।
तुम्हारी सखी
नेहा
BIRTHDAY INVITATION
Hallooooo............
Your invited to my first birthday................
From:
Date:
Time:
Place:
RSVP:
15
4.0स्ववृत लेखन (Biodata)
1. विद्यार्थी के मन में अपने भविष्य को लेकर तरह-तरह की कल्पनाएँ होती हैं।
कुछ अपना स्वतंत्र उद्यम या व्यवसाय खड़ा करने का स्वप्न देखते हैं तो कुछ
अपनी मनचाही नौकरी पाने का ख्वाब बुनते हैं। कोई डॉक्टर बनना चाहता है
तो कोई इजीनियर। कोई मैनेजर बनना चाहता है तो कोई बैंकर। वहीं कुछ
शिक्षक बनना चाहते हैं। विद्यार्थी जीवन होता ही है कल्पनाओं का संसार
रचने और उसे हकीकत में बदलने का प्रयास। एक दिन छात्र-जीवन अपनी
परिणति प्राप्त करता है और फिर हम अपनी कल्पना के महल के दरवाजे पर
दस्तक देने लगते हैं, अंदर प्रवेश का अरमान सँजोए।
लेकिन कई बार उस महल के द्वार पर प्रवेशार्थियों की अच्छी खासी भीड़
जमा हो जाती है और अंदर जगह की कमी होती है। कुछ को प्रवेश मिल
पाता है और अधिकाशं बाहर ही रह जाते हैं। द्वार के दोबारा खुलने की
प्रतीक्षा करते हुए।
4.1 स्ववृत(Biodata)
सच पूछा जाए तो प्रत्येक विद्यायर्थी बहुत आगे जाना चाहता है। इसके
लिए वह जी तोड़ कोशिश भी करता है। अखबारो, पत्रिकाओं और इंटरनेट पर
विज्ञापनों की तलाश करता है और लगातार अवेदन भेजता रहता है मगर या तो
आवेदनो का उत्तर ही नही मिलता या फरि नकारात्मक उत्तर आता है।
जिस तरह हमे मनचाही नौकरी की तलाश होती है उसी तरह कंपनियों
को भी मनचाहे उम्मीदवारों की खोज रहती है मगर उनकी समस्या ये रहती है
किवे जब भी विज्ञापन निकालते हैं तो स्ववृत का ढेर लग जाता है। कई बार तो
पांच पदों के लिए पाँच हजार स्ववृत आजाते हैं। ऐसे में किसी भी कंपनी के
लिए यह संभव नही कि वह हर किसी को बुलाए और उनका साक्षात्कर करे।
पाँच पदों के लिए अधिक से अधिक पचास उम्मीदवारों को ही बुलाया जा सकता
है। ये पचास उम्मीदवार (स्ववृत) के आधार पर ही चुने जाते हैं।
मानलो कोई माकेटिंग को अपना कैरियर बनाना चाहता है मगर नौकरी की
तलाश भी एक तरह की माकेटिंग ही है। इसमें तुम अपने ग्रहक को प्रेरित
करते हो कि वह तुम्हारे प्रतियोगियो की तुलना में तुम्हें पसंद करे। जिस प्रकार
ग्रहाकों को आकर्षित करने के लिए निर्माता लुभावने विज्ञापनो का सहारा लेता है
उसी प्रकार उम्मीदवार के लिए यह जरूरी है कि वह अपना स्ववृत(Biodata)सुंदर
और आकर्षक बनाए।
उपरोक्त विवर्ण से ये तो अब तक समझ आ ही गया होगा कि स्ववृत
(Biodata) एक विशेष प्रकार का लेखन है। जिसमें व्यक्ति विशेष के बारे में
किसी विशेष प्रयोजन को ध्यान में रखकर सिलसिलेवार ढ़ग से सूचनाए संकलित
की जाती हैं।
4.2 यह ध्यानद ने योग्य बातें
स्ववृत के दो पक्ष हैं। पहले पक्ष में वह व्यक्ति है जिसको केंद्र में रखकर
सूचनाएँ संकलित की गई होती हैं। दूसरा पक्ष उस व्यक्ति या संस्था का है
जिसके लिए या जिसके प्रयोजन को ध्यान में रखकर सूचनाएँ जुटाई जाती हैं।
पहला पक्ष है उम्मीदवार और दूसरा पक्ष नियोक्ता। किसी भी व्यक्ति से संबंधित
सूचनाओं का तो कोई अतं ही नहीं है। लेकिन हर सूचना नियोक्ता के काम की
नहीं हो सकती। इसलिए स्ववृत में वही सूचनाएँ डाली जा सकती जिनमें दूसरे
पक्ष यानी नियोक्ता की दिलचस्पी हो।
स्ववृत में ईमानदारी होनी चाहिए। किसी भी प्रकार के झूठे दावे या
अतिशयोक्ति से बचना चाहिए। यह मत भूलो कि नियोक्ता को उम्मीदवारों के
चयन का अच्छा खासा अनुभव होता है। गलत या बढ़ा-चढ़ा कर किए गए दावों
से उन्हें धोखा देने की कोशिश खतरनाक बन सकती है। अगर साक्षात्कार के
लिए बुला भी लिया गया तो उस दौरान कलई खुलने का पुरा अंदेशा रहता है।
मगर इसका यह अर्थ भी नहीं है कि अपनी खूबियों और अच्छाइयाँ बताने में
तुम कंजूसी बरतो। अपने व्यक्तित्व, ज्ञान और अनुभव के सबल पहलूओं पर
जोर देना तो कभी भी नहीं भूलना चाहिए।
17
• स्ववृत में आलंकारिक भाषा की गुंजाइश नहीं है। इसलिए इसकी शैली-सरल,
सीधी, सटीक और साफ होनी चाहिए तांकि पढ़ने वाले को सारी बातें एक ही
नजर में स्पष्ट हो जाएँ और अर्थ निकालने के लिए दिमाग पर जोर न
डालना पड़े।
• स्ववृत के आकार-प्रकार को लेकर कोई नियम नही है? लेकिन यह ध्यान
रखना चाहिए कि स्ववृत न तो जरूरत से अधिक लंबा हो न ही ज्यादर
छोटा। अगर बहुत संक्षिप्त हुआ तो इसमें अनेक जरूरी चीजें आने से रह
जाएँगी। दूसरी ओर यदि बहुत लंबा हुआ तो पढ़ने वाला अनेक पहलुओं को
नजरअंदाज कर सकता है।
• ध्यान देने की बात यह है कि जब पद बहुत बड़ा होता है तो उसके लिए
उम्मीदवार भी कम होते हैं। मसलन् यदि मैनेजिंग डायरेक्टर के पद के लिए
विज्ञापन दिया जाए तो गिनती के लोग ही अपना स्ववृत भेजेंगे। ये सारे
लोग अच्छी योग्यता और व्यापक अनुभव वाले होगें। अतः इस स्थिति में
स्ववृत यदि नौ-दस पृष्टों का भी हुआ तो उसे ध्यानपूर्वक और बारीकी से
पढ़ा जाएगा। लेकिन यदि नीचे के पद के लिए दिया जाए तो बड़ी संख्या में
आवेदन आएँगे। यहाँ पर यदि स्ववृत दो-तीन पृष्ठों से अधिक लंबा हुआ तो
पढ़ने वाला अपना धैर्य खो सकता है।
• स्ववृत साफ-सुथरे ढ़ग से टंकित या कंप्युटर-मुद्रित होना चाहिए। व्याकरण
संबंधी भूलों को भी दूर कर लेना चाहिए। ये बातें छोटी लग सकती हैं मगर
उम्मीदवार के प्रति विपरीत धारणा उत्पन्न करती हैं। नियोक्ता को ऐसा लग
सकता है कि उम्मीदवार या तो लापरवाह है या फिर उसकी शिक्षा-दीक्षा ढंग
से नहीं हुई है।
• स्ववृत सूचनाओं का एक सनुशासित प्रवाह है। यानी इसमें प्रवाह और
अनुशासन दोनों ही होने चाहिए। प्रवाह व्यक्ति परिचय से प्रारंभ होता है और
शैक्षणिक योग्यता, अनुभव, प्रशिक्षण, उपलब्धियाँ, कार्येतर गतिविधियाँ इत्यादि
पड़ावों को पार करता हुआ अपनी पूर्णता प्राप्त करता है। आवश्यकतानुसार
इनमें फेरबदल किया जा सकता है।
व्यक्ति परिचय के अंतर्गत उम्मीदवार का नाम, जन्मतिथि, उम्र, पत्र व्यवहार का
पता, टेलीफोन नंबर, ई-मेल का पता आदि सूचनाएँ दी जाती हैं। व्यक्ति परिचय
में जन्म तिथि और माता-पिता का नाम अवश्य डालना चाहिए। जिन पदों के
लिए बड़ी संख्या में आवेदन आते हैं वहाँ एक ही नाम के कई उम्मीदवार होते
हैं। पिता के नाम और जन्मदिन के आधार पर उनमें आसानी से भेद किया जा
सकता है।
इस के बाद यदि उम्मीदवार किसी बड़े पद के लिए आवेदन कर रहा है और
बहुत अनुभवी है तो अनुभव की चर्चा व्यक्ति परिचय के तुरंत बाद डाली जा
सकती है। लेकिन तुम्हारी तरह जो कॉलेज से तुरंत ही बाहर निकले हैं उन्हें
व्यक्ति परिचय के तत्काल बाद अपनी शैक्षणिक योग्यताओं की चर्चा करनी
चाहिए। शैक्षणिक योग्यताओं से संगंधित सूचनाएँ एक सारणी के रूप में प्रस्तुत
की जानी चाहिए जिनमें प्राप्त डिप्लोमा या डिग्री का विवरण, स्कूल या कॉलेज
का नाम, बोर्ड या विश्वविद्यालय का नाम, संबंधित परीक्षा का वर्ष, परीक्षा के
विषय, प्राप्तांक प्रतिशत और श्रेणी का उल्लेख होना चाहिए।
कार्येतर गतिविधियों- जब नियोक्ता किसी उम्मीदवार को चुनने का निर्णय लेता
है तो उसके संपूर्ण व्यक्तित्व को ध्यान में रखता है। कार्येतर गतिविधियों के
माध्यम से उम्मीदवार के व्यक्तित्व के बारे में अच्छी जानकारियाँ मिलती हैं और
पद के लिए उसकी योग्यता को तय करना आसान हो जाता है। मसलन यदि
कोई उम्मीदवार अच्छा फुटबॉल खिलाड़ी है तो यह माना जा सकता है कि उसमें
टीम भावना अवश्य ही होगी। अगर किसी को भाषण या वाद विवाद में देरों
पुरस्कार मिल चुके हैं तो इससे उसकी वाकपटुता और संभाषण कला का पता
चलता है। यदि तुम्हारी ऐसी कोई गतिविधि या हॉबी हो, जो तुम्हारी उम्मीदवारी
को सबल बनाते हों तो उनकी चर्चा करना मत भूलना।
स्ववृत में दो-तीन एसे लोगों के नाम पते भी दिए जा सकते हैं जो उम्मीदवार
के रिश्तेदार नं हों मगर उसकी योग्यताओं एवं क्षमताओं से परिचित हों। जिन
लोगों का विवरण दिया जाए वे प्रतिष्ठित व्यक्ति हों। यदि वे उसी क्षेत्र के
19
जाने-माने लोग हों जिस क्षेत्र में उम्मीदवार आवेदन कर रहा है तो सोने पर
सुहाग वाली बात हैं।
जो कॉलेज से तुरंत निकले हैं उन्हें अपने प्रिंसिपल या प्रोफेसरों के नाम-पते देने
चाहिए। कालेज से तुरंत निकले छात्रों के मामले में नियोक्ता, प्रिंसिपल या
प्रोफेसरों की राय को महत्तवपूर्ण मानते हैं क्योंकि इन लोगों ने उम्मीदवार को
विद्यार्थी रूप में कई वर्षों तक नजदीक से देखा-परखा होता है।
उपरोक्त लेख से सभी शंकाओं का समाधान हो गया होगा स्ववृत लिखने का
एक नमुना यह है।
स्ववृत
नामः नरेंद्र कुमार
पिता का नाम
:
सुरेश कुमार
माँ का नाम
शबनम
जन्म तिथि
:
18 नवंबर, 1982
डी 72, पाकेट चार, मयूर विहार (फेज एक)
वर्तमात पता
:
.
वही
दिल्ली 110092
स्थायी पता
टेलीफोन नं.
मेइबाइल न.
ई-मेल
:
011-22718296
:
9868234859
.
85narendra@yahoo.com
विषय
श्रेणी प्रतिशत
शैक्षणिक योग्यताएँ
क.सं. परीक्षा/डिग्री/वर्ष विद्यालय/बोर्ड
डिल्लोमा विश्वविद्यालय
महाविद्यालय
प्रथम 93%
प्रथम 95%
1. दसवीं
1997 राजकीय विद्यालय अंग्रेजी, हिंदी
सीबीएसई विज्ञान, गणित
सामाजिक विज्ञान
2. बरहवी
1999 वही
अंग्रेजी, भौतिक
सीबीएसई रसायन विज्ञान जीव
विज्ञान, गणित
3. बी.एस. सी. 2002 हिंदू कॉलेज
कम्यूटर साइंस
(आनस) दिल्ली विश्वविद्यालय
दिल्ली
4. एमबीए
2004 आदर्श इन्स्टीट्यूट
ऑफ मैनेजमेंट
अन्य संबंधित योग्यताएँ
प्रथम84%
प्रथम 85%
• कंप्यूटर का अच्छा ज्ञान और अभ्यास (एम. एस. ऑफिस तथा इंटरनेट)
• फांसीसी भाषा का कार्य योग्य ज्ञान
उपलब्धियाँ
• अखिल भारतीय वाद-विवाद प्रतियोगिता (वर्ष 2001) में प्रथम पुरस्कार
• राजीव गाँधी स्मारक निबंध प्रतियोगिता (2002) में प्रथम पुरस्कार
• विद्यालय और महाविद्यालय किकेट टीमों का कंप्तान
कार्येतर गतिविधियाँ और अभिरूचियाँ
• उद्योग व्यापर संबंधी पत्रिकाओं और अखबारों का नियमित पाठन
• देश भ्रमण का शौक
• इंटरनेट सर्किंग
• फुटबाल और क्रिकेट में अभिरूचि
21
एसे सम्मानित व्यक्तियों का विवरण जो उम्मीदवार के व्यक्तित्व और उपलब्धियों से
परिचित हों
1. श्री जे. रमानाथन, निदेशक, आदर्श इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, लोदी इस्टेट,
नयी दिल्ली।
2. श्री देवेंद्र गुप्ता, प्राध्यापक (मार्केटिंग), आदर्श इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट लोदी
इस्टेंट,नयी दिल्ली।
तिथि
स्थान
हस्ताक्षर
जब भी आवेदन करना हो इसे भेज दो। हाँ, विज्ञापन में वर्णित योग्यताओं और
आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इसमें थोड़ा हेर-फेर या जोड़-घटाव करना
मत भूलना। लेकिन यह तो आधी ही लड़ाई हुई। आधी तो अभी बाकी ही है।
सिर्फ स्ववृत देने भर से ही काम नहीं चलता। स्ववृत के साथ एक आवेदन-पत्र
भी लिखना होता है। इस आवेदन-पत्र के साथ हम स्ववृत को लगाते हैं और
नियोक्ता को उसके विचार के लिए भेज देते हैं।
स्ववृत से यह पता नहीं चलता कि उम्मीदवार पद और संबंधित संस्थान को लेकर
कितना गंभीर है। स्ववृत की एक कमी यह होती है कि यह सूचनाओं के
सिलसिलेवार संकलन के रूप में होता है। इसमें भाषा का वह वैयक्तिक स्पर्श
नहीं आ पाता। दूसरी ओर, आवेदन-पत्र हर विज्ञापन के लिए विशेषतौर पर लिखे
जाते है। ये उम्मीदवार के भाषा-ज्ञान और अभिव्यक्ति की क्षमता की तो जानकारी
देते हैं, साथ ही यह भी दर्शाते हैं कि उम्मीदवार पद और संस्थान को लेकर गंभीर
है या नहीं। नियोक्ता को योग्य उम्मीदवार की तलाश तो होती ही है, वह यह
अपेक्षा रखता है कि चयन के बाद वह नौकरी में कम से कम कुछ वर्षों तक
अवश्य टिके। आवेदन-पत्र से बहुत कुछ इन बातों का भी आभास नियोक्ता को
मिल जाता है। नोकरी के आवेदन-पत्र अपने स्वरूप में अन्य आवेदन पत्र से भिन्न
होता है?
“आवेदन का ढाँचा या स्वरूप तो वैसा ही होता है जैसे अन्य दूसरे आवेदन-पत्रों
का होता है। नेकिन इसका उद्देश्य अलग होता है-पद के लिए अपनी योग्यता और
गंभीरता के प्रति नियोक्ता का विश्वास जगाना। उद्देश्य की भिन्नता की वजह से
इसकी विषय-वस्तु अन्य आवेदन-पत्रों से भिन्न होती है।
आवेदन-पत्र की विषय-वस्तु के मुख्यतः चार हिस्से होते हैं। पहला हिस्सा
भूमिका का होता है, जिसमें उम्मीदवार विज्ञापन और विज्ञापित पद का हवाला देते
हुए अपनी उम्मीदवारी की इच्छा प्रकट करता है। दूसरे खंड में उम्मीदवार यह
बतलाता है कि वह विज्ञापन में वर्णित योग्यताओं और आवश्यकताओं को पूरा करने
में किस प्रकार सक्षम है। तीसरे खंड में उम्मीदवार पद और संस्थान के प्रति अपनी
गंभीरता और अभिरूचि को अभिव्यक्त करता है। चौथा खंड उपसंहार यानी
आवेदन-पत्र की विषय-वस्तु के औपचारिक समापन के लिए होता है।
तीसरे खंड के बारे में अभी-अभी बताया कि इसमें उम्मीदवार पद और
संस्थान के बारे में बपनी गंभीरता को अभिव्यक्त करता है। यह बात पूरे तौर पर
साफ नहीं हुई। जिस प्रकार नियोक्ता अपनी पसंद का उम्मीदवार चुनता है उसी
प्रकार उम्मीदवार को भी नियोक्ता की संस्थान पसंद आना चाहिए। तभी उम्मीदवार
के लंबे समय तक टिकने की संभावना रहती है। जब उम्मीदवार पद और संस्थान
को लेकर गंभीर होता है तो वह उसके बारे में जानकारियाँ हासिल करता है और
यह तय करता है कि वे उसके सपनों और भावी योजनाओं के अनुरूप हैं या नहीं।
अगर उम्मीदवार ने जानकारी जुटाने के बाद संस्थान को अपनी इच्छओं के अनुरूप
पाया है तो आवेदन-पत्र में इसकी चर्चा अवश्य होनी चाहिए। नियोक्ता पर इसका
बहुत ही अच्छा असर होता है।
23
आवेदन पत्र इस प्रकार लिखा जाता है-
सेवा में,
महाप्रबंधक (मानव संसाधन)
मानव संसाधन विभाग
इंडिया केमिकल्स लिमिटेड
36, न्यू लिंक रोड
अंधेरी, मुंबई- 400053
विषय : मार्केटिंग एक्जक्यूटिव पद के लिए आवेदन
महोदय,
आज दिनाकं 16 अप्रैल, 2006 को दिल्ली से प्रकाश्रित नवभारत टाइम्स
के प्रातः संस्काण में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञान हुआ है कि आपकी कंपनी को
मार्केटिंग एक्जक्यूटिव्स की आवश्यकता है। मैं इस पद के लिए अपना आवेदन
प्रस्तुत कर रहा हूँ।
मेरास्ववृत इस आवेदन के साथ संलग्न है। इसका अवलोकन करने पर आप पाएँगे
कि मैं इस पद के लिए पूरी तरह से उम्मीदवार हूँ। मैं विज्ञापन में आपके द्वारा
वर्णित सभी योग्यताओं और अर्हताओं को पूरा करता हूँ। संक्षिप्त विवरण इस प्रकार
(क) मैं विज्ञान का छात्र रहा हूँ और रसायन शास्त्र मेरा प्रिय विषय रहा है। मैंने
इस विषय में आनर्स के साथ प्रथम श्रेणी में स्नातक की उपाधि पाई है। मैं
आपकी कंपनी की गतिविधियों और उत्पादों के वैज्ञानिक से न केवल पूरी तरह से
वाकिफ हूँ बल्कि उन्हें आपके ग्राहकों के समक्ष सरल शब्दों में प्रस्तुत करने की भी
क्षमता रखता हूँ।
(ख) मैंने मार्केटिंग में प्रथम श्रेणी में एमबीए किया है और मुझे मार्केटिंग के
विभिन्न सैद्धांतिक और व्यापहारिक पहलुओं का पूरा ज्ञान है।
(ग) मैं लिखित और मौखिक दोनों प्रकार सं स्वयं को अभिव्यक्त करने में सक्षम
हूँ। मूझे वाद-विवाद और निबंध की अखिल भारतीय प्रतियोगिताओं में प्रथम
पुरस्कार मिले हैं।
(घ) मैं अपने विद्यालय और महाविद्यालय की किकेट टीमों का कप्तान रहा हूँ।
इससे मेरी टीम भावना और क्षमता प्रमाणित होती है।
(ड) मैं पर्यटन का शौक रखता हूँ और लगभग पूरे देश के महत्तवपूर्ण स्थानों का
दौरा कर चुका हूँ। मेरी यह प्रकृति पद की आवश्यकता के अनुकूल है।
मैं उद्योग और व्यवसाय से जुड़ी पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ने का शौक रखता हूँ। इनके
माध्यम से आपकी कंपनी की गतिविधियों से निरंतर अवगत रहा हूँ कि अपनी
स्थापना के कुछ ही वर्षों के अंदर कंपनी की गतिविधियों में व्यापक विस्तार हुआ
है। मेरी सूचना के अनुसार कंपनी ने भविषय के लिए अत्यंत महत्तवकांक्षी योजनाएँ
बनाई हैं। कि ऐसे माहौल में मुझे केवल अपनी उन्नति और विकास का अवसर
मिलेगा बल्कि मैं कंपनी की उन्नति और विस्तार में भी योगदान कर सकूँगा।
अनुरोध है कि उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुऐ मेरे आवेदन पर
सकारात्मक रूप से विचार करें और मुझे मार्केटिंग एक्जक्यूटिव के पद पर नियुक्त
करें।
सधन्यवाद
भवदीय
(नरेंद्र कुमार)
25
5.0 सहमति/असहमति
Agreement/Disagreement
1. अगर व्यक्ति किसी कार्य या नियम से सहमत है तो वो अपना सहमति-पत्र
लिख कर देता है अगर असहमत होता है तो लिखकर असहमति जता है
उदाहरण के लिए आपरेशन के समय डॉ. सहमति-पत्र लिखवाता है।
1. विद्यालय या महाद्यिालयों में दाखले Admition के समय, विद्यालय प्रबंधन
अपने विद्यालयों के नियमों के पालन के लिय सहमति-पा भरवाता या
लिखवाता।
2. व्यावसाथ से सम्बन्धित नियुक्ति के समय भी संस्था द्वारा नियमों को लेकर
सहमति-पत्र भरवाता जाता है।
3. अगर हम किसी कार्ययालों कों अपनी किसी परेशानी किसी कार्य के लिए
आर्थिक सहायता में बढ़ोतरी करना, आवकाश के लिए आवेदन देते हैं तो
सम्बंधित अधिकारी सहमति या असहमति के लिए आवेदन के आहिनी ओर
टिप्पणी लिखकर सहमति या असहमति जताता है-कई बार अधिकारी
अधीनस्थ की टिप्पणी के नीचे या तो केवल हस्ताक्षर भर करता है या मैं
उपयुक्त टिप्पणी से सहमत हूँ असहमत हूँ लिखता है।
4. अगर किसी आदरणीय व्यक्ति को कोई संस्था अपने किसी आयोजन के लिए
मुख्य अतिथि के रूप में आंमत्रण देती है तो अपनी अपने आने की सूचना
संस्था को सहमति-पत्र के द्वारा देते हैं।
सहमति-पत्र
मैं दीपक जोशी (शिक्षामंत्री) आपकी संस्था में दिनांक 2/12/2017 को समय 2
बजे उपस्थि होने के लिए सहमत हूँ।
दीपक जोशी
शिक्षामंत्री म.प्र.
शासन
सहमति-पत्र
मैं ऊपर लिखी टिप्पणी से सहमत हूँ, साथ ही इस ओर भी ध्यान
दिलाना चाहुँगा कि मुंबई कार्यालय के निर्देशक पिछले छह महीने से निर्धारित सीमा
से अधिक खर्च करते रहे हैं, जो परिपत्र का उल्लंघन है। चूंकि परिपत्र में किसी
प्रकार की छूट का प्रावधान नहीं है। अतः अतिरिक्त राशि निदेशक द्वारा देय होनी
चाहिए। यह राशि निर्देशक के वेतन से काटी जा सकती है।
विचारार्थ
पी शंकरन
अनुभाग अधिकारी
उपनिदेशक (प्रशासन)
नोटः- उपरोक्त पत्र से सहमति और विचार का बोध होता है
27
6.0 विचार-विमर्श। राय। मशवरा
किसी
मुद्दे पर अपनी बात व्यक्त करना विचार/राय। मशवरा Opinion
कोई विषय के साहचर्य से जो भी सार्थक और सुसंगत विचार हमारे
मन में आते हैं उन्हें हम यहाँ व्यक्त कर सकते है अपेक्षाकृत स्वष्ट फोकस वाले
विषय मिलने पर विचार प्रवाह को थोड़ा नियंत्रित रखना पड़ता है लिखते समय
विषय में व्यक्त वस्तुस्थिति की हम उपेक्षा नही कर सकते। इसलिए बहुत खुलापन
रखनेवाले विषयों पर हम शताधिक कोणों से विचार कर सकते हैं। विचार के
माध्सम से विषय की और ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
इतना तय है कि किसी भी विषय पर एक ही व्यक्ति के जेहन में कई
तरीकों से सोचने की प्रवृति होती है। ऐसी स्थिति अगर आपके साथ हो तो सबसे
पहले दो तीन मिनट ठहर कर यह तय कर लें कि उनमें से किस कोण से
उभरनेवाले विचारों को आप थोड़ा विस्तार दे सकते हैं ये तय कर लेने के बाद आप
एक आकर्षक-सी शुरूआत पर विचार करें हाँ ये खयाल रहे कि शुरूआत आकर्षक
होने के साथ-साथ निर्वाह योग्य भी हो। ऐसा न हो कि आगे आप जो कुछ कहना
चाहते हों उसे इस प्रस्थान के साथ सुसंबद्ध और सुसंगत रूप में पिरो पाना आपके
लिए मुमकिन न हो। इसलिए शुरूआत से आगे बात कैसे सिलसिलेवार बढ़ेगी,
इसकी एक रूपरेखा आपके मस्तिष्क में होना चाहिए। वस्तुतः सुसंबद्धता किसी भी
तरह के लेखन का एक बुनियादी नियम है।
खासतोर से जब किसी विषय पर विचार करने की बात हो उस सूरत में
सुसंबद्धता बनाए रखने के लिए कोशिश करनी पड़ती है। जब विषय तय कर लिए
गए हों तब बाहरी/आरोपित अनेशासन ही विचार-प्रवार में आंतरिक संबदृता कायम
करते हैं।
ध्यान देने योग्य बातें :-
• विचार लिखने से पूर्व संबंधित विषय को समझाना बहुत आवश्यक होता है।
• विचार पूर्ण एवं स्पष्ट होनी चाहिए। इसमें असली मुद्दे पर अधिक बल देना
चाहिए।
28
• विचार संक्षिप्त, विषय-संगत, तर्कसंगत और कमबद्ध होना चाहिए।
• विचार संतुलित एवं शिष्ट भाषा में देने चाहिए।
बोथ प्रश्न
1. संदेश लेखन का महत्व और कार्य लिखिए।
2. परिपत्र का अर्थ लिखए साथ ही एक परिपत्र तैयार करए।
3. परिपत्र की उद्देश्य और विशेषताएँ लिखिए।
4. स्ववृत (Biodata) लिखते समय किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
5. व्यक्तिगत निमंत्रण-पत्र लिखिए।
6. विचार और सहमति/उसहमति पत्र में क्या अन्तर है।
29
संदर्भ ग्रंथ सूची :-
1. अभ्सिव्यक्ति और माध्यम, जनसंचार माध्यम और लेखन, सृजनात्य लेखन,
व्यावहारिक लेखन कक्षा, 11 और 12 की हिन्दी पाठ्यपुस्तक, राष्ट्रीय शैक्षिक
अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, नया दिल्ली।
2. राजेश्वर प्रसाद चतुर्वेदी, महेन्द्र कुमार सामयिक हिन्दी निबन्ध, पत्र लेखन एवं
मुहावरे सहित, एम. आई वब्लिकेशन्स।
3. डॉ. मनीष शर्मा, व्याकरण दशिका कक्षा 9वी, 10वी न्यसरस्वती हाऊस
(इडिया) प्रा. लि., नई दिल्ली।