Class 12 Hindi Elective अंतराल Antral Term 2 Important Questions
(क) गीत गाने दो मुझे
(ख) सरोज-स्मृति
CBSE Class 12 हिंदी ऐच्छिक
पुनरावृति नोट्स
पाठ-2
(क) गीत गाने दो मुझे
गीत गाने दो.
.पिफर सीचने को।
मूल भाव - इस कविता में कवि ऐसे समय की ओर संकेत कर रहा है जब हर ओर निराशा ही निराशा ही निराशा व्याप्त है। वह निराशा में आशा का संचार करना चाहता है।
व्याख्या बिन्दुः- कवि कहता है कि जीवन में निरंतर बढ़ती हुई पीड़ा अथवा दुःख को कम करने के लिए, उसे भुलाने के लिए उसे गीत गाने दो। गीत हृदय की अनुभूतियाँ है। ये वेदना की तीव्रता को भुला सकते हैं, दुःखो को कम कर सकते है। जीवन मार्ग पर चलते हुए हर कदम पर चोट खाते-खाते और संघर्ष करते-करते होश वालों के भी होश छूट गए है। अर्थात् अब जीना आसान नहीं रह गया है। जीने के लिए जो भी था, मूल्यवान था, उसे छल-कपट से उन मालिकों ने रात के अंधकार में संकट के समयद्ध लूट लिया, जिन पर भरोसा था। अब पीड़ा सहते सहते कंठ रूकने लगा है, ऐसा लगता है कि सामने काल आ रहा है। अब जीना कठिन हो गया है। लोग कुछ कह नहीं पा रहे हैं। इस निराशा भरे वातावरण में कवि गीत गाना चाहता है ताकि व्यथा को रोका जा सके। कवि कहता है कि संसार हार मानकर स्वार्थ और अविश्वास के जहर से भर गया है। संसार से सहानुभूति, करूणा, उदारता, सहयोग, भाईचारा, आदि भावनाएँ लुप्त हो चुकी हैं। अब लोग आपस में एक दूसरे को अपरिचित निगाहों से देख रहे हैं। मानवता हाहाकार कर रही हैं। लोगों में जीने की इच्छा मर चुकी है। संसार में एकता, समता, सहानुभूति तथा प्रेम की लौ बुझ गई है। कवि मानवता की बुझती लौ को पिफर से जलाने के लिए स्वयं जलना चाहता है। वह ऐसे गीत गाना चाहता है जो संसार में पफैली निराशा में आशा का संचार कर सके।
(ख) सरोज स्मृति
देखा विवाह
तेरा तर्पण।
मूल भाव :- ‘सरोज स्मृति कविता कवि निराला की दिवंगत पुत्री पर केंद्रित है। इस कविता के माध्यम से निराला का
जीवन-संघर्ष एक भाग्यहीन पिता का संघर्ष, समाज से उसके संबंध तथा पुत्री के प्रति बहुत कुछ न कर पाने का
अकर्मण्यता बोध् भी प्रकट हुआ है।
कवि अपनी स्वर्गीया पुत्री सरोज को संबोधित करते हुए कहता है कि तेरा विवाह सभी प्रकार की रूढ़ियों से मुक्त
सर्वथा नवीन पति से हुआ था। विवाह के समय कवि माता-पिता दोनों के कर्तव्य निभा रहा था। कवि कहता है कि
पवित्रा कलश के जल से तेरा स्नान कराया गया तब तू मुझे मंद मुस्कुराहट के साथ देख रही थी। ऐसा लगता था कि तेरे होंठों में बिजली की चमक पफंसी हो। तुम्हारे हृदय में पति की सुंदर छवि थी। यह बात तुम्हारे श्रृंगार में मुखरित हो रही थी। विवाह के समय तेरा विश्वास तेरे उच्छ्वारों के साथ-साथ अंग-अंग में झलक रहा था अर्थात् तू अपने विवाह के समय पूर्ण आश्वस्त तथा प्रसन्न दिखाई दे रही थी। लज्जा व संकोच से झुकी हुई तेरी आँखों में एक नया प्रकाश उभर आया था, तेरे होंठों पर स्वाभाविक कंपन था। उस समय मेरे वसंत की प्रथम गीति का प्यास उस मूर्ति में साकार हो उठी थी।
(क) देवसेना का गीत
(ख) कार्नेलिया का गीत
CBSE Class 12 हिंदी ऐच्छिक
पुनरावृति नोट्स
पाठ-1
(क) देवसेना का गीत
आह वे दना
लाज गंवाई।
मूल भाव :- 'देव सेना की गीत' प्रसाद के 'स्कंदगुप्त नाटक से लिया गया है। मालवा के राजा बंधुवर्मा की बहन देव
सेना स्कंदगुप्त के प्रेम निराश होकर जीवन भर भ्रम में जीती रही तथा विषम परिस्थितियों में संघर्ष करती रही। इस गीत के माध्यम से वह अपने अनुभवों में अर्जित वेदनामय क्षणों को याद कर जीवन के भावी सुख, आशा और अभिलाषा से विदा ले रही है।
व्याख्या बिन्दु :- देवसेना मालवा के राजा बंधुवर्मा की बहन है। बंधुवर्मा की वीरगति के उपरांत देवसेना राष्ट्रसेवा काव्रत लेती है। वह यौवनकाल में स्कंदगुप्त को पाने की चाह रखती थी, किंतु स्कंदगुप्त मालवा के धनकुबेर की कन्या विजया की और आकर्षित थे। देव सेना जीवन में नितांत अकेली हो जाती है और गाना गाकर भीख माँगती है। जीवन के अंतिम पड़ाव पर भी देव सेना को वेदना ही मिली। स्कंदगुप्त को पाने में असपफल होने के कारण निराशा भरा जीवन व्यतीत किया। यौवन क्रियाकलापों को वह भ्रमवश किए गए कर्म मानती है, इसलिए उसकी आँखो से निरंतर आँसुओं की धरा बह रही है।
यौवनकाल में स्कंदगुप्त को न पाकर अपने प्रेम को वह भूल चुकी है। स्कंदगुप्त के प्रणयनिवेदन से वह स्वप्न देखने लगती है। उसे लगता है कि परिश्रम से उत्पन्न थकान के कारण जैसे कोई यात्री सघन वन के वृक्षों की छाया में नींद से भरा हुआ स्वप्न देख रहा हो और कोई उसके कान में अर्धरात्रि में गाए जाने वाला विहाग राग सुना रहा हो। स्कंदगुप्त के प्रणय- निवेदन से उसे लगता है कि उसने अपने समस्त श्रमपफल को खो दिया है। उसकी प्रे मरूपी पूँजी कहीं खो गई है। वह स्कंद गुप्त के निवेदन को ठुकरा देती है। वह जानती है कि अच्छे भविष्य की कल्पना व्यर्थ है, फिर भी उसके हृदय में मधुर कल्पनाएँ जन्म लेती है। वह भावी सुख की आशा करती है, इसलिए अपनी आशा का बावली कहती है। वह अपनी दुर्बलताओं को जानती है और यह भी कि उसकी हार निश्चित है, पिफर भी वह प्रलय से मुकाबला करती है। विषम परिस्थितियों से संघर्ष करती है और पराजय
स्वीकार नहीं करती। अंत में देव सेना संसार को संबोधित करती हुई कहती है कि तुम अपनी ध्रोहर ;प्रेमद्ध वापस ले लो, वह इसे
संभाल नहीं पायेगी। उसका जीवन करूणा और वेदना से भर गया है। वह मन ही मन लज्जित है।