Bhism sahani jeevan parichay in hindi PDF

Bhism sahani jeevan parichay in hindi PDF |भीष्म साहनी का जीवन परिचय

Bhism sahani jeevan parichay in hindi PDF

प्रगतिवादी आन्दोन 1000 के बाद उभर रहे परिणाम परियों को करने वाला आन्दोलत था। इस आन्दोस्त से सजा रिपुष्ट कथा साहित्य की नीव रखी। प्रगतिवादी साहित्य को प्रारम्भिक दौर में रचना की दृष्टि से नेतृत्व व निर्देशन प्रेमचन्द पंत खिला और उस से मिलापतु उपयस के माध्यम से मार्क्सवादी विचारों को जनता तक पहुंचने का प्रथम प्रयास राहुल सांकृत्याय ने आगो नही दुनिया को बदलों के माध्यम से किया।




Kavi Bhism sahani jeevan parichay PDF

जहाँ तक प्रगतिवादी आन्दोलत और औीषा साहनी के का साहित्य का प्रश्न है तो इसे काल की सीमा में बद्ध कर देना उचित नहीं है। हिन्दी लेख मे समकी सहर बहुत पहले हजागरण नाम से ही उठाद ने उसमें एक
औरहा था। इसी मानवादी चिनको वाइष्टिकोण से जोड़कर उसे जत जन तक पहुंचने वालों में एक नाम से सहती जी का है। स्व की भाँति मोहती सहज मानवीय अनुभूति और तत्कालीन जीवन के अन्त को लेकर सामने आए और उसे रचना का विषय बनाया जनवादी चेतना के लेखक म जी की लेखकीय संवेदना का आधार जनता की पीड़ा है के प्रति समर्पित तीजी कालेकी ठोस जीत पर अवरत है।


Bhism sahani ka jivan Parichay

भीम जी एक ऐसे साहित्यकार मे जो बातो माह देता ही नहीं बल्कि बात की सच्चाई और गहराई को नाप लेता भी उतना ही उचित समझते थे। वे अपने साहित्य के
माध्यम से सामाजिक विषमतावर्षको तोड़कर आगे बढ़ने का अवाहन करते थे। उनके साहित्य में सर्वत्र मानवीय कामामूल्य नैतिकता विद्यमान है।

उनका जन्म 8 अगस्त 1915 को रावलपित्री में एक सीधे-सादे मध्यवर्गीय परिवार में हुआ
या वह अपने पिता श्री हरबंसाहतीतीदेवी की सी
संतान थे। 1935 में लाहौर के गवर्नमेंट कालेज से अंग्रेजी विषय में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण
करने के पश्चात उन्होंने इन्द्राय मदान के निर्देशन
शीर्षक के अर्गत अपना शोधकार्य सम्पकिया सन् 1944 में तहसील जी के साथ हुआ। उनकी पहली महाती जब इण्टर कालेज की पत्रिका रात्री में तथा दूसरी
काजीली आँखे अमृत के सम्पादक में हंस में छपी सहती जी के झरोखे की महतो जीजीला तीलोकरा
उपल्यासों के अतिरिक्त आरेखा पटरियों पहला पाठ भटकती राख निशाली प्रतिनिधि कहानियों मेरी प्रिय कहानियाँ नामक दस कहानी संग्रहों का
सृजन किया लटनों के क्षेत्र में भी उन्होंने हा कविरा ख बाजार में माधवी मुआवजे जैसे प्रसिद्धि प्राप्त
हत्या के अन्तर्गत उन्होंने मेरे भाई अपनी बात मेरे साक्षात्कार तथा बाल साहित्य के अन्तर्गत वापसी
सृजन कर साहित्य की हर विधा पर अपनी
पहले उन्होंने आज के अतीत को इतना शरीर पंचतत्व में डिलीत हो गया। स्वतंत्र भारत के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक किया उसकी
गी। औघा जी की सबसे
अपनी
आत्मकथा का प्रकाशन करवाया
पर जगह मानवीय संवेदना केनत हस्ताक्षर थे जिन्होंने
का का
मृत्यु के कुछ दिन
|| जुलाई सन् 2003
अपने में
प्रगति
प्रतिफल
कि उन्होंने जिस जीवको जिया जिनसंघ
को उसी
अपनी रचनाओं में किया। इसी कारण उनके लिए
रचना कर्म और जीवन धर्म में अभेद था वह लेखन की सच्चाई को अपनी
कथाकार के रूप में भी जी पर सतपाल और प्रेम की गहरी छाप है। उसकी हालियों
मे अन्तर्विरोधों व जीवन के द्वन्द्वो विसंगतियों से जबड़े मध्यवर्ग के साथ हो
की जिजीविषा और संघर्षशीलताको उद्घाटित किया गया है। जीत के
संघर्षा
दौरान मैनेजत की आसान दुःख पीड़ा
बिओं को अपने उपन्यासों से ओझल नहीं होने दिया नई बहाती में जो मे
कथा साहित्य की जड़ता को लेकर उसे ठोस सामाजिक आधार दिया। एकता की
हैसियत से
जी ने विभाजन के दुर्भाग्यपूर्ण खुनी इतिहास को भोगा है। जिसकी
मे हम बराबर देखते है जहाँ तक नारी मुक्ति समस्या का प्रस्त है.
फा जी से अपनी रचनाओं में नारी के
स्वाधिकार आर्थिक
स्वातन्त्रता, स्त्री शिक्षा तथा सामाजिक उत्तरदायित्व आदि उसी सम्वत स्थिति
किया है। एक तरह से देखा जाए तो सहती जी प्रेमचन्द के पदचिन्हों पर
हुए उससे भी नहीं आने कल गए है। आधा जी की रचनाओं में सामाजिक अन्तर्विरोध
पूरी तरह उभरकर आया है। राजनैतिक मतवादा आरोप से दूर भ
साहनी ने भारतीय राजनीति में निरन्तर बढ़ते
की भ्रष्ट प्रणाली राजनीति में
अतीजावाद, नैतिक मूल्यों का
नेताओं की प्रवृत्ति
प्रदाता जातिवाद का दुरुपयोग
व्यापक स्तर पर आचरण अष्टता सेषण की
प्रवृत्तियां राजनैतिक आदर्श के खोखलेपन आदि का चित्रण बड़ी प्रामाणिकता
किया। उनका सामाजिक बोध व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित था।
उसके उपन्यासों से शोषणही समतामूलक प्रगतिशील समाज की रचता पारिवारिक स्तर
कड़ियों का विरोध संयुक्त परिवार के पारस्परिक विघटन की स्थिति के प्रति
तोष हुआ का सांस्कृतिक दृष्टिकोण वैज्ञानिक और
व्यवहारिक है, जो निरन्तर परिष्करण परिशोधन व परिवर्धन की प्रक्रिया से गुजरता है।
प्रगतिशील दृष्टि के कारण वह मूल्यों पर आधारित ऐसी भावना के पक्षधर है जो मानत
मात्र के कल्याण के प्रति प्रतिबद्ध और उपादेय है।
उनके साहित्य में जहाँ एक ओर बहनदयतानुभूति है। वही दूसरी ओर जातीय तथ
राष्ट्रीय स्वामिन की आग भी है। वे पूँजीवादी आधुबोध और
धारा के अन्तविरोध को
चलते है।
भारतीय समाज के आधुनिकीकरण के फलस्वरूप
अष्टाचार का पर्दाफाश करते हैं।
विचार
रचनाकार और जी
और देशी पूंजीद मे
सेता करके
पूँजीवाद के द्वारा अपनी
संस्कृति से
हुई लिकोटि के कुसंस्कारों
को चित्रित कर प्रेमचन्द की परम्परा को आगे बढ़ाते दिखते हैं। वे एक और आधुनिकताबोध
की विसंगति और
विधते हैं तो दूसरी ओर रूढ़ियों अंधवि
[बी] धार्मिक कुरीतियों पर प्रहार करते हैं।
यदि पुरुष
की बात की जाए तो जी भारतीय गृहस्थ जीवन में स्त्री
पुरुष के जीवन को रथ के दो पहियाँ के रूप में स्वीकार करते हैं। विकास और सुखी जीव
के लिए दोनों के बीच आदर्श संतुलन और
दम्पतियों को
अवार्य है। उसकी
रचनाओं में सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने वाले
गरिमा
रेखांकित किया गया है। उसका वास है कि विर्य के लिए समुचित शिक्षा, आर्थिक
स्वतंत्रतावास की सुविधा आदर्श समाज की रचना के लिए
आवश्यक है। वह
थे जो असर पाकर अपना
करती है। भाजी
आ रही वह की जो
करके एकता और रागात्मक अनुबंधवाहका प्रमुख आधार
मानवीय मूल्यों पर आधारित की धर्मो से जड़ी है कि उन्हें
पृथक करती है। उनके उपन्यास
मत
प्रगति समाज की
स्थापना के साथ समाज में व्याप्त आर्थिक विसंगतियों के बाद परिणाम धर्म की
को उद्घाटित किया गया है।
संवाद से प्रभावित होने के कारण भीघा जी समाज में व्याप्त आर्थिक विसंगतियों के
असद परिणाम को बड़ी गंभीरता से अनुभव करते थे पूंजीवाद के अंतर्गत वह
जन सामान्य
बहुआयामी शोषणको समाज विकास में सर्वाधिक बाधक और
यकीयाँ
उन्होंने आर्थिक विधाता और उसके दुखद परिणामों को बीमत से उद्‌घाटित किया
जो समाज के स्वायों सुधक का परिणाम है और इन दुःखद स्थितियों के लिए पूर्ण
समाजवउत्तरदायी है। एक शिल्पों के रूप मे मोहसिहस्त कलाकार थे
और वस्तु के प्रति यदि उसमें सजता और तत्परता का था तो शिल्प सौष्ठत के प्रति
रहते थे।
गये और
मेक्ति प्रदान करते हैं प्रेम की भांति
परिवेश की समय में वस्तु और पात्र के अन्त
अपनी ओ
वस्तुको
को जिस
खते हैं और इनसम्बलता केसी संघों को रूपापित करते हैं वह
चित है अपितु में नया मै
जुड़ जाता है। अपनी रचनाओं में उन्होंने जहाँ जीवन के स्तम वध का प्रमाणिक
चित्रण किया है वही कामंगलवार को आदर्शों को भी
रेखांकित किया है। अपनी रचनाओं के कारण वह हिन्दी साहित्य में
गुगतनारी उपन्यासकार के रूप में गे
Bhism sahani jeevan parichay pdf
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